This is one of the poems that came to me during my last Advance Course in Rishikesh. Enjoy...
खेल तमाशा जीवन सारा, क्या कोई जीता क्या कोई हारा।
वो सबको है खूब नचाता, दुख की सुख की भूमिका कराता।
सुख की भूमिका तू खूब निभाता, पर दुःख तुझको है ज्यादा सिखाता।
खूब खेल है उसने रचाया, ज्ञानी बोले इसको माया।
जो न जाने वो घबराया, इस माया में पाँव फंसाया।
गुरु ज्ञान तुझे मंच दिखाता, पात्र हो तुम यह बोध कराता।
मस्त खिलाड़ी तुम्हें बनाता , खिलाने वाले से भी मिलाता।
खेलो तुम ये खेल निराला, खिलाने वाला खुद मतवाला।
हर परीस्थिति में तुम मुस्काना, पात्र निभाकर बढ़ते जाना।
दुःख के पत्थर से जो टकराना, मुस्काकर तुम बड़ते जाना।
बहता जल ही काम में आता, जो रुक जाता वो सड़ जाता।
बहता जल ही काम में आता, जो रुक जाता वो सड़ जाता।
With Love,
Anurag
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