Thursday, April 15, 2010

तड़प

In lucknow advance course, I got time for one of favorite activities.
Writing some poetry, these lines dawned in hot (:-) 43 degree C) but soothing
silence of the course.
 
तड़प

सब कुछ कर लू, सब कुछ पा लू.
     ये भी हो जाये, वो भी हो जाये.
कुछ मैं खोजू, दिल कुछ चाहे.
    मिले बिना जिसे एक सुकून न आये.

दिल में खोजू तो एक तड़प है तेरी.
    तू मिल जाये तो सब मिल जाये.
इस तड़प में रमकर एक सुकून में पाऊ.
   घर आ जाऊ, खुद को पा जाऊ.

ये तड़प ही है बस मंजिल मेरी.
   जहाँ पूरा हो जाऊ, मैं गुरु को पा जाऊ.
ये तड़प ही है बस चाहत मेरी,
  जहाँ खुद को खो जाऊ और तू ही हो जाऊ.

with love,
Anurag

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